Friday, August 8, 2008

शहर का पानी

अब तेरी याद से वेह्शत नहीं होती मुझ को
ज़ख्म खुलने से अजियत नहीं होती मुझ को
अब कोई आये चला जाये मैं खुश रहता हूँ
अब किसी शख्स की आदत नहीं होती मुझ को
ऐसा बदला हूँ तेरे शहर का पानी पीकर
झूंठ बोलूँ तो निदामत नहीं होती मुझ को
में ने भी की है मोहब्बत, सो किसी की खातिर
कोई मरता है तो हैरत नहीं होती मुझ को
इतना मशरूफ हूँ जीने की हवस में यारों
साँस लेने की भी फुर्सत नहीं होती मुझ को

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